भारतीय स्वायत्तता की जांच के लिए 1928 में ब्रिटिश सरकार द्वारा साइमन कमीशन की स्थापना की गई थी। हालाँकि, इस पैनल में एक भारतीय प्रतिनिधि की अनुपस्थिति के कारण, कई राजनीतिक संगठनों द्वारा इसका बहिष्कार किया गया था। लाला लाजपत राय ने एक जुलुस का नेतृत्व किया और स्थिति के विरोध के रूप में लाहौर स्टेशन की ओर मार्च किया। पुलिस ने लाठी चार्ज किया परिणामस्वरूप प्रदर्शनकारियों को बेरहमी से पीटा गया। लाला लाजपत राय को बुरी तरह घायल होने के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया और कुछ सप्ताह बाद उनकी मृत्यु हो गई। भगत सिंह इस घटना से बहुत क्रोधित हुए और प्रतिशोध लेने का फैसला किया। उन्होंने ब्रिटिश पुलिसकर्मी जॉन पी. सॉन्डर्स की हत्या कर दी और बाद में अपने सहयोगियों के साथ दिल्ली की सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में बम फेका। भगत सिंह ने उस घटना में अपनी भूमिका को स्वीकार किया जब पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया।
भगत सिंह ने मुकदमे के दौरान हुई जेल के दौरान भूख हड़ताल का नेतृत्व किया। 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह उनके साथियों राजगुरु और सुखदेव को फाँसी दे दी गई। वक्ताओं के क्रम में अजीत शर्मा,सोनाक्षी तिवारी आदि वक्ताओं ने कार्यक्रम को संबोधित किया । कार्यक्रम का संचालन विजय शंकर दूबे व अध्यक्षता शिक्षक कांग्रेस के ज़िला अध्यक्ष श्याम शंकर उपाध्याय जी ने किया । इस अवसर पर पंकज सिंह,पंकज मणि तिवारी,नीलम सोनी,सुनीता सोनी,दिव्या तिवारी, नीता तिवारी,अस्मिता शुक्ला, निशा बानो,वंदना जायसवाल आदि लोग उपस्थित रहे। कुलदीप पांडेय ने आये हुए सभी अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया ।